फ़िल्म इस बात की मिसाल है कि एक अच्छा अभिनेता और एक अच्छी परफ़ॉर्मेंस किसी औसत, बल्कि घटिया, फ़िल्म को भी मनोरंजक बना सकते हैं. विनय पाठक अभी तक की श्रेष्ठतम कॉमिक अदायगियों में से एक के साथ अकेले दम पर फ़िल्म को देखने लायक बनाते हैं. सिर्फ़ देखने लायक ही नहीं, ठहाकों से भरपूर.
लगभग बिना कहानी वाली यह फ़िल्म एक शाम की घटना पर आधारित है. फ़्रांसीसी फ़िल्म 'द डिनर गेम' (अंग्रेज़ी शीर्षक) से उड़ाया गया प्लॉट भारतीय संदर्भों में नहीं जँचता और पटकथा में अविश्वसनीयता का भाव लाता है.
बाक़ी ऐक्टरों में रजत कपूर हमेशा की तरह संतुलित हैं. रणवीर शूरी छोटे से रोल में हैं और थोऽऽड़ा ओवर-द-टॉप हुए हैं. मिलिंद सोमन इतने बुरे ऐक्टर हैं ये मुझे पता नहीं था. सारिका ठीक हैं, कम से कम आज के कमल हासन से बेहतर. काफ़ी दिनों बाद उन्हें पर्दे पर देखकर अच्छा लगा.
विनय पाठक के लिए देखने वाली फ़िल्म. पुराने हिंदी गानों के शौकीनों को और मज़ा आयेगा.
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1 comment:
फ़िल्म की शायद इकलौती अच्छी बात है कि कम पैसों में बनी है और विनय पाठक के लिए अच्छा शो-केस बनती है.. बाकी ढेरों असंतुलन है.. फिल्मों में यह नया चलन है टेलीविज़न की तर्ज़ पर उन्हें शूट किया जाए.. स्क्रिप्ट के भारतीय रुपांतरण के लिहाज़ से लगता ही नहीं कोई कायदे की मेहनत की गई है.. फिल्म देखते हुए भले हंसी आए, बाद में कुछ याद नही रहता.. मिलिंद को देखना असहनीय है.
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