(Army of Shadows)

द्वितीय विश्व युद्ध के समय नाज़ी जर्मनी द्वारा फ़्रांस के कब्ज़े का एक बड़े वर्ग ने प्रतिरोध किया था. अंडरग्राउंड और काफ़ी हद तक असंगठित इस विरोध को फ़्रेंच रज़िस्टेंस (फ़्रांसीसी प्रतिरोध) के तौर पर जाना जाता है. फ़िल्म के लेखक (जोसफ़ केसेल) और निर्देशक (ज्याँ-पियरे मेलविल) दोनों खुद उस प्रतिरोध का हिस्सा थे. प्रतिरोध के अपने अनुभवों और कुछ असली किरदारों से उन्होंने यह फ़िल्म बुनी है. पर फ़िल्म देशभक्ति और उससे जुड़ी नारेबाज़ी के बारे में नहीं है. बल्कि जानबूझकर इससे बचती है. चालीस के दशक के पेरिस की गलियों के मेहनत और सूक्ष्मता से तैयार किए गए खुशबूदार और कुछ न्वारी (noirish) से नज़ारों की पृष्ठभूमि में कहानी किरदारों, उनकी क्षमताओं, भावनाओं, दुविधाओं, और निर्णयों की है. उससे भी ज़्यादा उनके अपने ज़िंदा रहने की.
अजीब सी बात है कि 1969 में फ़्रांस में प्रदर्शित इस फ़िल्म को अमेरिका के थियेटरों तक पहुँचने में 37 साल लग गये. किन्हीं वजहों से (निश्चय ही राजनैतिक नहीं, शायद व्यावसायिक) फ़िल्म पिछले साल तक अमेरिका में प्रदर्शित नहीं हुई थी. डीवीडी पर दो महीने पहले ही आई है. अमेरिकी दर्शक और समीक्षक इस देरी पर हैरान हैं. उनकी तालियों का शोर थमा नहीं है.
[आधिकारिक साइट]
2 comments:
ज़्यां पियेर मेलविल ऊंची चीज़ हैं. इस फ़िल्म का ध्यान नहीं था, अब पता करने की कोशिश करूंगा.. लेकिन पिछले ही वर्ष लंबे गैप के बाद ला समुराई और द रेड सर्किल देखी थी. दिल झूम गया था..
ऊँची चीज़ हैं इसमें कोई शक नहीं. उनकी मास्टरी और अनूठापन एक एक फ़्रेम में दिखता है. ताज़ा प्रिंट देखियेगा. प्रिंट का रेस्टोरेशन (जोकि 2004 में इसके सिनेमैटोग्राफ़र की देखरेख में ही हुआ) बेहतरीन है.
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