Tuesday, July 03, 2007

ऑफ़साइड (2006) - ईरान

Offside (Iran, Persian)

कमाल का प्रयोग. फ़िल्म ईरान और बहरीन के बीच खेले गए पिछले फ़ुटबॉल विश्व-कप योग्यता मैच के साथ-साथ चलती है. कहानी और पात्रों का व्यवहार मैच की घटनाओं से प्रभावित होता रहता है. और फ़िल्म वहीं मैच के बीच शूट की गई है. डॉक्यूमेंटरी-नुमा फ़िल्मांकन के बीच कई कलाकारों का अभिनय बेजोड़ है. सोचिये अगर तो अन्दाज़ा लगाना मुश्किल है कि फ़िल्म और इसकी कहानी कैसे सोची गई होगी. योजना और इम्प्रोवाइज़ेशन के बीच कितने कमाल का इंटरऐक्शन रहा होगा. इतने इम्प्रोवाइज़ेशन के बाद इतनी दिलचस्प फ़िल्म बना पाना ही जफ़र पनाही की सफलता है.

फ़िल्म जहाँ ऊपरी तौर पर एक कॉमेडी है, इसकी परतों में ईरान के कई सामयिक और सांस्कृतिक मुद्दे उभरते हैं. बड़ी ख़ूबी से ये बात उठती है कि औरतों की आज़ादी जैसे मुद्दों को एक आम ईरानी मज़हब के जरिये ही देखे ये ज़रूरी नहीं. बल्कि अक्सर वह उसे सामाजिक संदर्भों से उपजे कॉमन सेंस के जरिये देखता है.

3 comments:

आलोक said...

कब से लिख रहे हो यहाँ चोरी छिपे? :) एक क्यूबन फ़िल्म देखी थी, माता पिता अमेरिका चले जाते हैं बेटे को छोड़ कर और फिर कई सालों बाद वापस आते हैं। सन होगी १९८६ या १९८७। नाम ध्यान नहीं आ रहा।

Gaurav Pratap said...

सामाजिक सन्दर्भों से उपजा कामन सेन्स प्रायः 'पितृसत्तात्मक' ही होता है(या बेहतर है यूँ कहें बन दिया जाता है.)

v9y said...

आलोक,
चोरी तो काफ़ी पहले पकड़ी गई थी, बस अख़बारों (नारदों पढ़ लो) की नज़र में नहीं आई. शुरू किए तो सदियाँ (2002 में कभी) हो गईं. तुम्हारी बताई फ़िल्म ध्यान नहीं आ रही. तुम्हें और कुछ याद आए तो बताना.

गौरव,
सही कहा. आखिर लगभग सारी दुनिया के पारंपरिक सामाजिक ढाँचे कमोबेश पुरुष-पक्षीय ही हैं.